ज़िद्दी बच्चे चाहे कितनी भी ज़िद करें किन्तु, वह है तो बच्चे ही ना। बच्चे मन के कोमल और सच्चे होते है। ज़िद्दी बच्चे को धेर्य एवं स्नेह से समझाना चाहिए। ऐसे समय में सबसे पहले माता-पिता को ही समझना होगा। इसके लिए आपको बच्चों की पूरी बात सुननी चाहिए फिर अपनी बात रखनी चाहिए। उन्हें पीट कर आप उनकी ज़िद को सिर्फ बढ़ावा दें रहे है। आपके पीटने के वजह से – वह बच्चा जब बढ़ा हो जाएगा तब उसे आपका डर नहीं रहेगा यां फिर ज़िन्दगी भर आपसे सिर्फ डरेगा।
बच्चे ज़िद्दी क्यों होते है, क्या है वजह इनके पीछे?
उदारण के दौर पर मान लीजिए कि आपको पेट में दर्द है, इसलिए आप डॉक्टर के पास गए। वहीं डॉक्टर ने आपकी समस्या को समझ ने या इलाज करने की बजाएं कुछ और कर दिया। मतलब आपको पीट दिया तो आपको कैसा लगेगा? ज़ाहिर सी बात है, गुस्सा आएगा। वैसे ही अगर बच्चे किसी बात को लेकर ज़िद कर बैठे तो आपको सबसे पहले उनकी ज़िद के पीछे की वजह क्या है – यह जानें? अधिकतर माता-पिता गलती कर बैठते है। बच्चे यदि ज़िद करें तो उन्हें पीटते है यां फिर उनके रोने पर उनकी ज़िद पूरी कर देते है। आप ऐसा ना करें।
बच्चों की गलती को गुनाह बनने से रोकने के लिए कई बार हाथ उठाना अनिवार्य भी होता है किन्तु एक हद तक।
अपने और बच्चो के दांतो को चमचमाता कैसे रखे?
आइए जानें कई और ऐसे कारण की क्यों ज़िद्दी बच्चे किसी की सुनते नहीं है?
- हर बात पर ज़बरदस्ती करने से।
- कठोर एवं गलत बाषा का प्रयोग करने से।
- उनकी बातों को नज़रअंदाज़ करना और बाद में कोई विकल्प भी ना देना उनको।
- हर बात पर पीटना और गुस्सा करना।
- बच्चों के साथ बहुत खराब बर्ताव करना।
ज़िद्दी बच्चे को कैसे करें Handle?
“बच्चे होते है, अपनी मर्ज़ी के मालिक!”
जी हां, उन्हें यदि कुछ पसंद आ गया यां उन्हें कुछ चाहिए तो फिर बस कहानी वहीं खत्म। बच्चों को कोई रोक टोक नहीं पसंद होती है। बच्चे को यदि हम उनके किसी कार्य में रोके तो वह फिर से उसी कार्य को करेंगे। इसलिए उनकी बात अच्छे से समझिए और कुछ पल के लिए उन्हें हां कह दे। आपको उस चीज में दिलचस्पी दिखानी होगी फिर वह चीज उचित ना हो तो उन्हें उसके गेर फ़ायदे बताएं और विकल्प दे उसके अलावा।
अच्छे से समझाएं क्या सही है और क्या गलत।
अक्सर माता-पिता उन्हें रिजल्ट अच्छा लाने के लिए रिश्वत देते है। किन्तु, यह कुछ हद तक ही सही है। क्योंकि, बच्चों को कभी ना कभी तो पढ़ाई का महत्व खुद समझना होगा ही। इसलिए उन्हें इस तरह की रिश्वत दें जिससे वह सामने से हर बार पढ़ाई की बात करें। बच्चों को किताबें दें जिसमे उनके मनपसंद किरदार हो। उन्हें यह बात पता होनी चाहिए कि उनके लिए क्या गलत है क्या सही। अभी ज़माना बहुत बदल गया है, सही गलत का फर्क बच्चों को छोटी सी उम्र में बताने कि सलाह देना ज़रूरी माना जाता है। जैसा आप करेंगे वैसा वह करेंगे तो आपको भी उसी तरह व्यवहार करना होगा जैसा आप अपने बच्चों में देखना चाहते है।
गलती हो जाएं तो क्या करें?
‘मनुष्य गलतियों का पुतला होता है’ यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी। ज़िद्दी बच्चे को उनकी गलती का पश्चाताप करवाना ज़रूरी है। उन्हें मानसिक या शारीरिक रूप से पीड़ा देना नहीं। जो गलती उनसे हो जाएं उनके सामने वह गलती होने के नुकसान इस तरह रखें की वह खुद ही समझ जाएं अपनी गलती। ज़्यादातर बच्चे गलती तो करते है किन्तु, स्वीकार नहीं करते डर के कारण। ऐसे में आपको बहुत शांत तरीके से पूछना है, और उन्हें यह बात छुपा कर कितनी बड़ी गलती की है वह समझाना है।
अपनी आँखों के निचे के काले गड्डो को अब कह दीजिये bye – bye ऐसे!
इज्जत करना और समय देना है अत्यंत आवश्यक।
बच्चों में समझ नहीं होती यह बात पर विश्वास मत करना। क्योंकि, बच्चों में हम से ज़्यादा ‘ग्रासपिंग पॉवर’ (Grasping power) होता है। चाहे वह कुछ न समझें किंतु याद शक्ति और इच्छाशक्ति हम से तेज़ होती है। जैसा भी आप उन्हें महसूस करते है, उसी तरह वह अपना व्यवहार करते है। उनसे यदि आप प्यार से बात करेंगे तो वह भी आप ही की तरह आपसे बात करेंगे। बच्चों को समय दें उनके साथ बातें करें और उन्हें ऐसा महसूस करवाए की उन्हें आपसे प्यारा और कोई दोस्त न लगें।
ज़िद्दी बच्चे को और ज़िद्दी कैसे ना होने दें?
जब भी वह किसी भी चीज की ज़िद करें तो अपना आपां न खोए। जैसे बच्चे को आप कहेंगे कार्टून आज के बाद नहीं देखना है तो जवाब अवश्य ही ना होगा। आप उन्हें स्टोरी बुक्स पढ़ने को कहिए कार्टून्स की। अब तो कार्टून के ज़रिए सही गलत क्या है पढ़ाया भी जाता है वह करें। तब भी ना मानें तो आप उन्हें बहार खेलने के लिए कहे सकती है यां कुछ और किन्तु गुस्सा ना करें। उनके साथ उनका कोई और मनपसंद काम करें।
किन्तु, अधिक छूट एवं पाबंदी से सिर्फ नुकसान होगा और कुछ नहीं।
माता-पिता का पूरा अधिकार है, बच्चों की ग़लतियों पर सझा देने का किन्तु एक हद तक यदि, बे वजह बहुत हाथ उठाया जाएं तो police में case होगा।
अन्य बातों का भी रखे खयाल।
- आदेश ना दें हर बातों पर।
- उच्ची आवाज़ से बातें ना करें।
- धमकियां ना दें हर बात पर।
- ऐसा कुछ ना देखे जिससे उन पर बुरा असर हो।
- खाना न खाएं तो खाने को इतना अच्छा सज़ाएँ कि उसे खाने का मन खुद हो।